शिव शंकर शर्मा
समुद्र मंथन के बाद से देश मे कुम्भ का आयोजन करने का धार्मिक परम्परा का शुरुआत होता है जिसके लोकप्रियता का पैमाना भले आज डिजिटल क्रान्ति के कारण दुनिया ने देखा है पर ऐसे लोगों क़ो पता होना चाहिए की जब देश क़ो आजद हुए कुछ साल ही हुआ था यानि 1954 मे तब भी कुम्भ के भीड़ मे हुए भगदड़ मे हजारो लोग की जान गई थी!
यहाँ मौत का जिक्र किसी क़ो दोषी ठहराने केलिए, या इस बार हुए घटना क़ो छोटा दिखाने केलिए नहीं कर रहे है बल्कि यह कहना चाह रहे है की मौत आस्था क़ो कमजोर नहीं करती बल्कि और मजबूत करती है!
कुम्भ का आयोजन हिन्दुओं का सार्बजनिक एकता का प्रदर्शन है जो दुनिया क़ो सन्देश देती है की किसी व्यक्ति के किये कृत के करण भले हमें जाति जाति मे बटा प्रचारित किया जाता हो, हमारे व्यक्तिगत दोष क़ो बाड़ा बता बता कर सालो लड़ाने का प्रयास किया जाता हो पर हम हिंदू कितना एक और संगठित है उसको देखना हो तो कुम्भ देखो जहाँ सब एक साथ अपने माता गंगा के गोद मे स्नान करते, उन्हें पूजते और साथ साथ बैठ कर प्रसाद ग्रहण करते और फिर कुंभ का संयोग होगा तब पुनः आने के संकल्प के साथ विदा होते!