अक्षयवट और पिंडदान का महत्व – Story of Akshay Vat (Banyan Tree ) – Gaya
जैस की नाम से ही मालूम पड़ता है अक्षय वट Akshay Vat मतलब जिसका क्षय न हो कभी नस्ट न होने वाला वट बृक्ष . बिहार के गया में में स्थित यह बृक्ष अपने आप में एक आश्चर्य है बहुत सी पौराणिक बातें इससे जुडी हुई है तो आइये जानते है की आखिर क्या बात है की यह नस्ट क्यों नहीं होता और इसका क्या कारन है .
पौराणिक तथ्य जो बहुत कुछ कहती है –
गया पिंड दान के दौरान अचानक ही एक सज्जन पुरोहित जितेंद्र_कुमार_दुभलिया से मुलाकात हो गयी और उन्होंने जो इस बारे में बताया वह सच में किसी अस्चर्य से कम नहीं । उनके अनुसार त्रेता युग मे श्रीराम, लक्ष्मण और सीता जी भारत भ्रमण में गया के फल्गु नदी के किनारे उनका आगमन होता है और सीता जी अपने पिता का पिंड दान करने की इक्षा प्रकट करती है , पुरोहितों द्वारा पिंड दान हेतु सामाग्री का विबरण श्रीराम जी को बताया जाता है और सभी सामग्री का प्रबंद करने के लिए बोला जाता है ।सामग्री को उपलब्ध कराने हेतु दोनो भाई सीता जी को एक वटबृक्ष के पास छोड़ कर चले जाते है ।
समय बीतता है आने में देर होती है और सूर्यास्त होने लगता है परन्तु राम लक्ष्मण की उपस्तिथि नहीं होती है तभी दशरथ जी प्रगट होते है और सीता से पिंड का दान मांगते है ऐसे सीता जी के द्वारा सिर्फ बालू से पिंड दान कर दिया जाता हैं । जब सूर्यास्त के बाद दोनो भाई पहुचते है तो पिंड दान समय से न करने का उन्हें अफसोस होता है उस समय सीता घटना का वर्णन करते हुए कहती है कि आप नदी,ब्रम्हण,गाय माता से पूछ लीजिये मैं साक्षात पिता जी का दर्शन कर समय पर पिंड दान कर चुकी हूं।
परन्तु गाय , फल्गु जी और ब्रम्हण देव सीता जी के बात पर चुप रहते है ऐसे में वट बृक्ष प्रकट हो सीता माता के बात को सच बताते है है । तभी से सीता माता के आशीर्वाद से वटबृक्ष अक्षय हो जाते है ! जो आज भी वैसे ही है। आज भी जब कभी आप गया जी में पिंड दान करने के लिए पहुँचते है तो आपको यहाँ इस Akshay Vat अक्षय वट से जुडी विभिन्न रोचक तथ्यों की जानकारी प्राप्त होती है .
Akshay Vat क्या महत्त्व है अक्षयवट का –
अक्षय वट भारतीय पौराणिक कथाओं और सन्तान धर्म के महत्वपूर्ण धार्मिक और ऐतिहासिक प्रतीकों में से एक है। इसे ब्राह्मी फल या कल्पवृक्ष के नाम से भी जाना जाता है। अक्षय वट का वृक्ष विश्वास के अनुसार कभी नहीं मरता और हमेशा हरा-भरा रहता है। हिन्दू धर्म और संस्कृति में इसका बहुत महत्त्व है, और यह वृक्ष भारतीय समाज में विविध प्रकार की पूजा और आदर में उपयोग किया जाता है।
इतिहास –
अक्षय वट Akshay Vat का इतिहास और परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है। इसका प्राचीनतम उल्लेख वेदों में भी पाया जाता है, जहां इसे अमृततुल्य कहा गया है। इसके वृक्ष को ब्रह्मा, विष्णु, और शिव की त्रिमूर्ति के रूप में भी पूजा जाता है। इसे भारतीय संस्कृति में शुभता, समृद्धि, और लंबी आयु का प्रतीक माना जाता है।
Science में भी चर्चा –
अक्षय वट Akshay Vat के वृक्ष का वैज्ञानिक नाम Ficus Benghalensis है, और यह भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों में पाया जाता है। इसकी विशेषता यह है कि इसकी शाखाएँ बहुत लंबी होती हैं और जमीन पर गिरते हुए नए पेड़ों को बनाती हैं, जिससे यह वृक्ष विस्तार में बढ़ता है।
धार्मिक आश्था से जुड़ा होना –
अक्षय वट Akshay Vat को हिन्दू धर्म में धार्मिकता और आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है। इसे सरस्वती, लक्ष्मी, और काली जैसी देवियों का वास स्थल माना जाता है। मान्यता है कि इसके नीचे बसने वाले भगवान विष्णु के अधिवास होते हैं और इसलिए इसे विष्णुलोक का प्रतिष्ठान भी माना जाता है।
अक्षय वट Akshay Vat के वृक्ष के चारों ओर जो जगह बनती है, उसे कभी नहीं छोड़ा जाता है, इसलिए इसे समाज में अमरता और अविनाशिता का प्रतीक माना जाता है। इसकी पूजा और विधान में भी विशेष धार्मिकता है। अक्षय वट Akshay Vat के नीचे सभी शुभ कार्यों का आयोजन किया जाता है और मान्यता है कि वहां की प्रासाद का भोजन करने से व्यक्ति को अमरता की प्राप्ति होती है।
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